Thursday, January 28, 2021

नए ज़माने की फसल-स्ट्रॉबेरी..


लक्ष्य कितना भी बड़ा हो... लेकिन संकल्प दृढ़ हो तो पत्थर पर भी पेड़ उगाए जा सकते हैं... कुछ ऐसा ही नजारा बिहार के भोजपुर में देखने को मिल रहा है... जहां स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही है...


पारंपरिक खेती से हटकर-

किसानों ने हाल के दिनों में पारंपरिक खेती से ऊपर उठकर व्यवसायिक खेती को भी अपनाना शुरु कर दिया है.... भोजपुर जिले में जहां कल तक अन्य प्रांतों में उपजे स्ट्रॉबेरी का स्वाद लोग चखने थे..वहां अब भोजपुर जिले में उत्पादित स्ट्रॉबेरी का स्वाद ले रहे हैं...पूर्व सांसद आर के सिन्हा बहियारा स्थित अपने पैतृक गांव में जैविक विधि से... स्ट्रॉबेरी की खेती करा रहे हैं... जिसका मकसद किसानों की आय को बढ़ाना तो है ही... साथ ही स्वस्थ समाज भी बनाना है.....यह स्ट्रॉबेरी पूरी तरह जैविक कृषि से तैयार है... और इसकी मांग राजधानी पटना के अलावा आसपास के जिलों में सबसे ज्यादा है...



किसानों को अच्छी आमदनी-

फार्म के केयरटेकर धर्मेंद्र पांडे बताते हैं कि... बहियारा में तैयार हुई स्ट्रॉबेरी की क्वालिटी बहुत ही बेहतर है......उन्होंने बताया कि एक पेड़ को लगाने की कीमत करीब ग्यारह रुपये आती है... और एक पौधे में लगभग दो किलो स्ट्रॉबेरी के तैयार फल निकलते हैं...जिसे व्यापारियों को 600 से 700 रुपये प्रति किलो बेच दिया जाता है..


प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार-

स्ट्रॉबेर्री इम्मयूनिटी सिस्टम को बढ़ाने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला एक दुर्लभ फल है... जिसकी मांग पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है..यही कारण है कि मौसम अनुकूल ना होने के बावजूद.. भोजपुर में जैविक विधि से हो रही स्ट्रॉबेरी की खेती की चर्चा बिहार में खूब हो रही है....


Wednesday, January 27, 2021

भोजपुरी के शेक्सपियर-भिखारी ठाकुर

भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की टोली में रंगमंच पर नाट्य कला का जादू बिखेरने और लौंडा नाच की परंपरा शुरु करने वाले शख्स रामचंद्र मांझी को इस बार पद्मश्री सम्मान मिला.. जिसके बाद एक बार फिर भिखारी ठाकुर की नाटक मंडली चर्चा में हैं.. 



भिखारी ठाकुर की मंडली का आखिरी लौंडा

भिखारी ठाकुर की नाच मंडली के आखिरी लौंडा रामचंद्र माझी.. जब मंच पर भिखारी ठाकुर के नाटक विदेशिया का मंचन करते हैं... तो लोगों को एहसास नहीं होता कि... इस उम्र में भी ऐसी कला का प्रदर्शन किया जा सकता है... लौंडा नाच की परंपरा की शुरुआत रामचंद्र मांझी ने हीं की थी.... विदेशिया नाच बिहार में उस वक्त शुरू हुई थी.. जब बिहार भुखमरी और बेरोजगारी से जूझ रहा था....लोग रोजगार की तलाश में बाहर जाते थे... और पत्नियां घर पर रहती थीं.... महिलाओं के विरह की कहानी को विदेशिया के रूप में भिखारी ठाकुर ने मंच पर लाया था.... नाटक इतना मशहूर हुआ और देश-विदेश में इतनी ख्याति मिली... जो देशव काल की सीमा को लांघ गई.. लेकिन धीरे-धीरे इस नाटक के कलाकार लुप्त होते गए... और अब तो एकमात्र कलाकार रामचंद्र मांझी बच गए... जिन्हें अब सरकार पद्मश्री सम्मान देने जा रही है....रामचंद्र मांझी के बाद इस कला की सेवा करने वाला कोई कलाकार नजर नहीं आ रहा.... खुद रामचंद्र माझी मानते हैं कि... उस वक्त भुखमरी और बेरोजगारी के कारण लोग अपने लड़कों को इस मंडली में भेजते थे... लेकिन अब विकास हो चुका है और शिक्षा का स्तर भी काफी ऊंचा है... लिहाजा लौंडा नाच की तरफ कोई नहीं आता..


सम्मान को लेकर खुशी 

छपरा के नगरा प्रखंड के तुजारपुर के रहने वाले... रामचंद्र माझी का परिवार मिलने वाले सम्मान को लेकर काफी खुश है.... लेकिन इनके परिवार का कोई भी सदस्य इस कला से नहीं जुड़ा है... रामचंद्र माझी इस कला को बचाने के लिए ताउम्र संघर्ष करते रहे... और अपने परिवार को इससे अलग रखा... क्योंकि वे जानते थे कि इस कला का कोई भविष्य नहीं है... लोग इस कला को कला की तरह नहीं... बल्कि उपेक्षा की नजरों से देखते थे... क्योंकि हमारे समाज में पुरुषों का लौंडा बनना कहीं से जायज नहीं माना जाता था..

विरासत का आखिरी लौंडा 

94 साल के रामचंद्र माझी अभी भी मंच से जुड़े हुए हैं.... और कई जगहों पर इनके नाटकों का मंचन होता है... लेकिन आने वाले समय में भिखारी ठाकुर का लौंडा नाच और विदेशीया कहीं अतीत के पन्नों में गुम ना हो जाए... इसके लिए भी सोचना होगा... क्योंकि रामचंद्र मांझी इस विरासत के आखिरी लौंडा साबित होंगे


मुंगेर में फिर चली गोली- BJP प्रवक्ता को अपराधियों ने मारी गोली..बेहतर इलाज के लिए पटना भेजा गया

फिर दहला मुंगेर- 



आज मुंगेर में फिर बड़ी अपराध की घटना घटी..यहां पर अपराधियों ने दिनदहाड़े बीजेपी प्रवक्ता अजफर शम्सी को गोली मार दी. उन्हें गंभीर हालत में मुंगेर अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अजफर शम्सी को जमालपुर कॉलेज के पास गोली मारी गई. गोली की आवाज सुनकर आसपास के लोग पहुंचे और उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया.  सूचना मिलने के बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंचकर मामले की जांच कर रही है.. फिलहाल यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अपराधियों ने क्यो गोली मारी है. शम्शी के ड्राइवर के अनुसार घटना दिन के 11 बजे की है जब वो कॉलेज पहुंचे थे तभी कुछ लोगों ने उन्हें गोली मार दी.. इधर शम्सी को बेहतर इलाज के लिए पटना रेफर किया गया है..डॉक्टरों के अनुसार शम्सी के कान के पीछे भी गोली लगी है ..इधर BJP प्रवक्ता अजफर शमशी को गोली मारने के मामले में जमालपुर कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य ललन प्रसाद सिंह गिरफ्तार कर लिया गया है..मालूम हो कि 2 दिन पहले कॉलेज का प्रभार लेने को लेकर विवाद हुआ था..वही अजफर शमशी के बयान पर SP ने ललन प्रसाद सिंह को गिरफ्तार किया है।


घटना पर दुख-

इधर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने इस मामले को लेकर डीजीपी से की बात की और इस घटना पर दुख जताया जायसवाल ने कहा कि जो भी दोषी होंगे. उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी. 


विपक्ष ने फिर साधा निशाना-

इधर बिहार में गिरती कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष के नेताओं ने एक बार फिर सरकार पर निशाना साधा है.. कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौर ने कहा की पहले आम लोगो पर गोली चलती थी अब तो बीजेपी प्रवक्ता को गोली मारी गई है। बिहार के लॉ एंड ऑर्डर पर सीएम का कोई कंट्रोल नहीं रह गया है। वही आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बिहार में कानून व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गई है।

Sunday, January 17, 2021

प्रयागराज ही नहीं, इस त्रिवेणी संगम की महिमा भी अपरंपार है!

 तीन नदियों का संगम

मशहूर सोमनाथ मंदिर देखने के लिए अगर आप यहां आते हैं. तो सिर्फ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करके वापस नहीं लौटे. यहां से कुछ ही दूरी पर त्रिवेणी घाट है. इसे तीन पवित्र नदियों का संगम कहा जाता है. कपिल, हिरण और सरस्वती नदी का मिलन होता है. और प्रकृति का मिलन तो हमेशा से खूबसूरत रहा है. शाम हो या सुबह यहां संगम किनारे बैठने में जो सुकुन मिलता है. उसका एहसास आप बहुत ही कम जगहों पर जाकर कर सकते हैं.




उद्गम स्थल की नहीं जानकारी

लोकमान्यताओं के मुताबिक तीनों नदियों यहां से समुद्र के अंतिम गंतव्य तक बहती हैं. यह मानव जन्म, जीवन और मृत्यु का प्रतीक है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस घाट में स्नान करने से सभी शापों से मुक्ति मिलती है और पूरे जीवन में बीमारियां नहीं होती हैं. हालांकि, ये नदियां कहां से आती हैं. इसके बारे में कोई जानकारी नहीं देता है.



भलका तीर्थ का भी करें दर्शन

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की मौत तीर लगने से हुई थी. कहा जाता है कि इसी जगह पर कृष्ण भगवान को तीर लगी थी और उन्होंने शरीर का त्याग किया था. इस मंदिर को भलका तीर्थ बोलते हैं. यहां एक प्रतिमा बनी हुई है. तीर मारनेवाला बहेलिया भगवान से माफी मांगने की मुद्रा में बैठा हुआ है. इस मंदिर में दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. 









हजारों साल पुराना पीपल का पेड़
भलका मंदिर परिसर में काफी पुराना पीपल का पेड़ है. कहा जाता है कि इसकी उम्र करीब 5 हजार साल होगी. सबसे खास बात ये है कि ये पेड़ कभी सूखता नहीं है. इसकी छांव में बैठने का सुख ही अलग है. मन शांत हो जाता है. हर वक्त यहां पर ठंडी हवा का झोंका चलते रहता है.

Thursday, January 14, 2021

बिहार के पर्यटन नक्शे पर वेणुवन और घोड़ा कटोरा

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा नालंदा जिले के राजगीर में वेणुवन के विस्तार और घोड़ाकटोरा में नये पार्क का उद्घाटन कर इस स्थल को पर्यटन के नक्शे पर लाने की एक कोशिश है। वैसे बिहार में पर्यटन की अपार संभवानाएं है...बस जरूरत है तो इच्छा शक्ति की..ऐसा लगता है कि इसबार नीतीश कुमार जी पर्यटन को काफी फोकस कर रहे है ताकि दुनियाभर के पर्यटक बिहार आए और यहां के ऐतिहासिक, प्रकृति और समृद्ध संस्कृति विरासत को जान सकें। वैसे वेणुवन के विस्तार का काम पिछले करीब डेढ़ साल से चल रहा था. अपने राजगीर प्रवास के दौरान वेणुवन के पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए मुख्यमंत्री ने इसके सौंदर्यीकरण का निर्देश दिया था. इसका सौंदर्यीकरण करते हुए कई सुविधाओं के विस्तार के साथ-साथ एक बड़े पार्क का रूप दिया गया है.

पहले वेणुवन करीब पांच एकड़ का था, लेकिन अब यह करीब 13 एकड़ का हो गया है. आसपास के खाली पड़े एरिया को इसमें शामिल कर विस्तार किया गया है. यहां एक बड़ा मेडिटेशन सेंटर का भी निर्माण कार्य किया गया है, जहां बड़ी संख्या में बौद्धधर्मावलंबी एक साथ बैठ सकेंगे. 


वेणुवन राजगीर (नालंदा) का सबसे मनोरम एवं शांत जगह है. वास्तव में यह एक बौद्ध मठ है जिसका निर्माण राजा बिम्बिसार ने महात्मा बुद्ध को ठहरने के लिए करवाया था. यहाँ आने वाले टूरिस्ट इस जगह पर बैठ कर एक बार ध्यान जरूर लगाते






नालंदा का घोड़ा कटोरा 

घोड़ा कटोरा राजगीर के पास एक छोटा और सुंदर पिकनिक स्थल है। हिंदू पुराणों के अनुसार यहाँ राजा जरासंध का अस्तबल था, इसलिए इस जगह का नाम घोड़ा कटोरा पड़ा। यह विश्व शान्ति पगोड़ा के पास स्थित है। छोटी छोटी पहाड़ियों से घिरी यह झील बहुत सुंदर दिखाई देती है और घूमने के लिए यह एक आदर्श स्थान है। आप घोड़ागाड़ी या तांगा और साईकिल से यहाँ पहुँच सकते हैं। आप यहाँ नौका विहार का आनंद भी उठा सकते हैं। साथ ही घोड़ा कटोरा झील में भगवान बुद्ध की लगी विशाल प्रतिमा देशी-विदेशी सैलानियों को काभी लुभाती है 


अब आप भी तैयार हो जाए वेणुवन और घोड़ा कटोरा जाने के लिए..तो देरी किस बात की चलिए और मिलते हैृ.

Wednesday, January 13, 2021

मकर संक्रांति का पतंग से रिश्ता ?

 हमारे देश में मकर संक्रांति हर साल जनवरी माह में मनाया जाता है।  वैसे तो इस पर्व के मौके पर कई धार्मिक कार्य किए जाते है जिसे आपसब जानते ही  होंगे और करते भी होंगे।  लेकिन मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का अलग आनंद होता है.. वैसे संक्रांति के मौके पर पतंग उड़ाने की परंपरा गुजरात में सबसे अधिक है लेकिन अब यह पूरे देश में फैल गई है।  मकर संक्रांति के मौके पर न सिर्फ हर उम्र के लोग पूरे जोश और मस्ती से पतंग उड़ाते हैं, बल्कि कई जगहों पर तो पतंगोत्सव का एक भव्य आयोजन भी किया जाता है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस मौके पर पतंग क्यों उड़ाई जाती है?



स्वास्थ्य के लिए लाभदायक

मकर संक्रांति के पर्व पर पतंग उड़ाना सेहत के लिए लाभदायक है। हालांकि पतंग उड़ाने के पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं है लेकिन फिर भी सेहत को देखते हुए इस दिन पतंग उड़ाना अच्छा माना जाता है। जनवरी में सर्दी के मौसम में लोग अपने घरों में रहना पसंद करते हैं लेकिन उत्तरायण के दिन अगर कुछ देर धूप के बैठा जाए तो इससे शरीर में कई रोगों का प्रभाव कम भी हो जाता हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, उत्तरायण में सूर्य की गर्मी शीत के प्रकोप और शीत के कारण होने वाले रोगों को समाप्त करने की क्षमता रखती है। ऐसे में घर की छतों पर जब लोग पतंग उड़ाते हैं तो सूरज की किरणें एक औषधि की तरह काम करती हैं। शायद इसलिए मकर संक्रांति के दिन को पतंग उड़ाने का दिन भी कहा जाता है।



मकर संक्रांति पर तिल खाने के फायदे

मकर संक्रांति का त्योंहार देश के प्रत्येक राज्य में मनाया जाता है कई जगह नाम इसके अलग हो सकते हैं लेकिन सभी जगह तिल खाने की परंपरा है। आयुर्वेद में कहा गया है कि तिल की तासीर गर्म होती है और सर्दी के मौसम में जब शरीर का तापमान गिर जाता है तो शरीर को अतिरिक्त गर्मी की जरूरत होती है। ऐसे में तिल का सेवन शरीर में गर्मी व उर्जा के स्तर को बनाए रखता है। साथ ही तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, आयरन, फास्फोरस, जिंक, प्रोटीन, कैल्शियम, बी काम्प्लेक्स और कार्बोहाइट्रेड आदि महत्वपूर्ण तत्व पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त तिल में एंटीऑक्सीडेंट्स भी होते हैं जो कई बीमारियों के इलाज में मदद करते हैं। यह पाचन क्रिया को भी सही रखता है और शरीर को निरोगी बनाता है। इसलिए इस मौके पर लोग तिल भी खाते हैं। 


अब आपसब भी पतंग उड़ाए और तिल के बने मिठाई का भी आनंद लीजिए।  

ध्यान क्या है..और इसे कैसे करें?

ध्यान है केवल स्वयं की उपस्थिति में आनंदित होना; ध्या
न स्वयं में होने का आनंद है। यह बहुत सरल है - चेतना की पूरी तरह से विश्रांत अवस्था जहां आप कुछ भी नहीं कर रहे होते। जिस क्षण आपके भीतर कर्ता भाव प्रवेश करता है आपके अंदर तनाव में आ जाता है; चिंता तुरंत आपके भीतर प्रवेश कर जाती है। कैसे करें? क्या करें? सफल कैसे हों? असफलता से कैसे बचें? तुम पहले ही भविष्य में चले जाते हो।

ध्यान मात्र होना है, बिना कुछ किए - कोई कार्य नहीं, कोई विचार नहीं, कोई भाव नहीं। आप बस हो। और यह एक कोरा आनंद है। जब आप कुछ नहीं करते हो तो यह आनंद कहां से आता है? यह कहीं से नहीं आता या फिर हर जगह से आता है। यह अकारण है, क्योंकि अस्तित्व आनंद नाम की वस्तु से बना है। इसे किसी कारण की आवश्यकता नहीं है। यदि आप  अप्रसन्न हो तो आपके पास अप्रसन्नता का कारण है; अगर आप प्रसन्न हो तो आप बस प्रसन्न हो - इसके पीछे कोई कारण नहीं है। आपक मन कारण खोजने की कोशिश करता है क्योंकि यह अकारण पर विश्वास नहीं कर सकता, क्योंकि यह अकारण को नियंत्रित नहीं कर सकता - जो अकारण है उससे दिमाग बस नपुंसक हो जाता है। तो मन कुछ ना कुछ कारण खोजने में लग जाता है। लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि जब भी आप आनंदित होते हो, तो आप किसी भी कारण से आनंदित नहीं होते, जब भी आप अप्रसन्न होते हो, तो आपके पास अप्रसन्नता का कोई कारण होता है - क्योंकि आनंद ही वह चीज है जिससे आप बने हो। यह आपकी ही चेतना है, यह आपका ही अंतरतम है। प्रसन्नता आपका अंतरतम है।

ध्यान की शुरुआत खुद को मन से अलग करने से होती है, एक साक्षी बनने से। खुद को किसी भी चीज से अलग करने का यही एकमात्र तरीका है। यदि आप प्रकाश को देखते हो, स्वाभाविक रूप से एक बात निश्चित है: की आप प्रकाश नहीं हो, आप ही वह हो जो इसे देख रहे हो। यदि आप फूल को देखते हो, तो एक बात निश्चित है: आप फूल नहीं हो, तुम देखने वाले हो। बस आप कुछ नहीं करें यही ध्यान है। सुनने और पढ़ने में बहुत आसान लगता है लेकिन करने में  कठीन है लेकिन असंभव नहीं। धन्यवाद। 

Tuesday, January 12, 2021

श्वास का जीवन से रिश्ता

 ध्यान और स्वास्थ्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। क्योंकि बीमारी का बहुत बड़ा हिस्सा मन से मिलता है। गहरे में तो बीमारी का नब्बे प्रतिशत हिस्सा मन से ही आता है। ध्यान मन को स्वस्थ करता है। इसलिए बीमारी की बहुत बुनियादी वजह गिर जाती है। ध्यान की प्रक्रिया से शरीर पर सीधा प्रभाव होता है। क्योंकि दस मिनट की तीव्र श्वास, आपकी जीवन ऊर्जा को, वाइटल एनर्जी को बढ़ाती है। सारा जीवन श्वास का खेल है। जीवन का सारा अस्तित्व श्वास पर निर्भर है। श्वास है तो जीवन है। हम जिस भांति श्वास लेते हैं, वह पर्याप्त नहीं है। हमारे फेफड़े में, समझें, अंदाजन कोई छह हजार छिद्र हैं। हम जो श्वास लेते हैं वह दो हजार छिद्रों से ज्यादा छिद्रों तक नहीं पहुंचती। बाकी चार हजार छिद्र, दो तिहाई फेफड़े सदा ही कार्बन डाइआक्साइड से भरे रह जाते हैं। वह जो चार हजार छिद्रों में भरा हुआ कार्बन डाइआक्साइड है, वह हमारे शरीर की सैकड़ों बीमारियों के लिए कारण बनता है। वह कार्बन डाइआक्साइड समझें कि आपके भीतर जड़ है, जहां से सभी कुछ गलत निकल सकता है। दस मिनट की भस्त्रिका, तीव्र श्वास, धीरे-धीरे आपके छह हजार छिद्रों को छूने लगती है, स्पर्श करने लगती है। आपके पूरे फेफड़े शुद्धतम प्राण से भर जाते हैं। इसका परिणाम होगा, गहरा परिणाम शरीर पर होगा।