Sunday, July 10, 2022




देवशयनी एकादशी का महत्व 


आज से देवता चार माह तक विश्राम करेंगे

आज से देवता चार माह तक विश्राम करेंगे।इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि देवता सो जायेंगे।धर्म प्रधान समाज होने के कारण भारत में विज्ञान को भी धर्म के आधार पर ही समझाया गया है। यह विज्ञान से जुड़ा हुआ ही तथ्य है।

पंच तत्व में ही देवता है 

वास्तव में तो पंचतत्व (पृथ्वी, अग्नि,जल ,वायु और आकाश) में ही सम्पूर्ण देवता निहित है।वर्षा ऋतु प्रारम्भ होते ही ये पाँचों तत्व अपना स्वभाव बदल लेते हैं।पृथ्वी पर अनेक प्रकार की वनस्पतियां उग आती है।जगह-जगह पानी भर जाने से मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।विभिन्न प्रकार के रेंगने वाले जहरीले जीव बिलों में पानी भर जाने से सतह पर आ जाते हैं।अग्नि मन्द पड़ जाती है। खुले में हवन आदि शुभ धार्मिक कार्य करना कठिन हो जाता है।वर्षा जल मिल जाने से अधिकांश जल दूषित हो जाता है तथा हवा में भी लगभग चालीस प्रतिशत पानी की मात्रा हो जाती है।आकाश में बादल छाये रहने के कारण धूप धरती तक नहीं पहुँच पाती है।

पाँचों प्रमुख देवता अपना स्वभाव बदल लेते

पाँचों प्रमुख देवता अपना स्वभाव बदल लेते हैं।अतः ऐसे समय कोई सामजिक (विवाह आदि) अथवा मांगलिक कार्य करने में अनेक संकटों का सामना करना पड़ेगा और हमारा शरीर भी तो इन पाँच तत्वों से मिलकर ही बना है इसलिये जो प्रभाव बाहर है वही हमारे शरीर के अंदर होंगे।अगर बाहर मन्दाग्नि है तो हमारे शरीर की भी अग्नि (पाचन क्षमता) कमजोर पड़ जाती है। 

हमारे पूर्वजों का विज्ञान

इन सब बातों का ध्यान करके हमारे पूर्वजों ने देवशयनी ग्यारस से लेकर देवउठनी ग्यारस (शरद ऋतु) तक को चातुर्मास का रूप देते हुए देवता विश्राम काल मानते हुए लम्बी यात्राओं, सामाजिक तथा विशेष मांगलिक कार्यक्रमों पर धार्मिक रोक लगा दी।समुद्र में इस समय मछलियाँ पकड़ने पर भी रोक रहती है,क्योंकि यह जलीय जीवों का प्रजनन काल रहता है।धर्मप्रधान समाज होने से उसने यह मन से स्वीकार कर लिया और एक स्थान पर रहते हुए अपना व्यावसायिक कर्म के साथ व्यक्तिगत धार्मिक उपासना को प्राथमिकता दी। गाँव-गाँव में मंदिरों-चौपालों पर सावन-भादौ में रामचरित मानस या अन्य धार्मिक ग्रंथों का वाचन होता है ।

यही विज्ञान है

इसलिये आईये हम सब अपने धर्म का पालन करें । यही विज्ञान है।इन सोये हुए देवताओं की रखवाली करना हम सब का सामाजिक और नैतिक दायित्व है।किन्तु आज पहले जैसी परिस्थिति नहीं हैं।लोगों के व्यवसाय भी ऐसे हो गये हैं कि यात्राएँ करना ही पड़ती है।किन्तु फिर भी जितना हो सके हम इन पंचतत्वों की रक्षा का इस समय कोई न कोई संकल्प लें।पौधे लगायें, पानी रोकें, नदियों,पहाड़ों, जलस्रोतों,जंगल की रक्षा करें। धरती,जल,आकाश, वायु को प्रदूषित होनें से बचायें।यही सोये हुए देवताओं की रक्षा करना है ।


Friday, July 8, 2022



जानिए नाभि का रहस्य...नाभी में तेल लगाने के चमत्कारी फायदे 


पैदा होने के बाद जब मां की नाल से जुड़ी बच्चे की गर्भनाल हो डॉक्टर्स द्वारा बांधकर अलग किया जाता है तो बच्चे के पेट पर एक निशान बन जाता है जिसे नाभि बोलते हैं। नाभि का आकार और संरचना सभी में अलग-अलग होती है। महिलाओं की तुलना में पुरुषों की नाभि के आसपास अधिक रोएं होते हैं। नाभि सिर्फ स्तनधारी जीवों में पाई जाती है, अंडे देने वाले जीवों में नहीं।

यह सूर्य से संबंधित केंद्र है, जो पाचन की प्राणमयी क्रिया एवं भोजन के शरीर में शोषण की गतिविधियों को नियंत्रित करता है। इस तरह मणिपूरक चक्र ताप एवं शक्ति का केंद्र है। शरीर के संतुलन को सही बनाए रखने के साथ अंग प्रत्यंगों में सामंजस्य एवं नाड़ियों के कार्य-संचालन व नियंत्रण में नाभि मंडल की भूमिका महत्वपूर्ण है।




नाभि के रहस्य 


1. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार नाभि हमारी जीवन ऊर्जा का केंद्र है। कहते हैं कि मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में 6 मिनट तक रहते हैं। शरीर में दिमाग से भी महत्वपूर्ण स्थान है नाभि का। नाभि शरीर का प्रथम दिमाग होता है, जो प्राणवायु से संचालित होता है।

2. हमारा सूक्ष्म शरीर नाभि ऊर्जा के केंद्र से जुड़ा रहता है। यदि कोई संत या सिद्धपुरुष शरीर से बाहर निकलकर सूक्ष्म शरीर से कहीं भी विचरण करता रहता है, तो उसके सूक्ष्म शरीर की नाभि से स्थूल शरीर की नाभि के बीच एक रश्मि जुड़ी रहती है। यदि यह टूट जाती है तो व्यक्ति का अपने स्थूल शरीर से संबंध भी टूट जाता है।




नाभि में तेल लगाने के फायदे

नाभि शरीर का केंद्र बिंदु होता है। हर रात सोने से पहले अगर आप मात्र दो बूंद तेल भी नाभि में डालते हैं तो सेहत के कई आश्चर्यजनक फायदे मिल सकते हैं। यह त्वचा, प्रजनन, आंखों और मस्तिष्क के लिए अत्यंत उपयोगी है। आइए जानते हैं नाभि में तेल डालने से क्या और कौन से फायदे मिलते हैं...

पाचन क्षमता बढ़ाती है

सरसों के तेल की कुछ बूंदों से नाभि (बेली बटन) की मालिश करने से आंत्र सिंड्रोम (बॉवेल सिंड्रोम) को दूर करने में मदद मिलती है। यह आंत के स्वास्थ्य दुरुस्‍त करता है और पेट की ख़राबी, पेट फूलना या कब्ज जैसे अन्य पाचन संबंधी मुद्दों को कम कर करता है। नेवल ऑयल थेरेपी में नाभि तेल आपके पाचन तंत्र के लिए रामबाण है। अगर आप रोजाना अपनी नाभि के किनारों के आसपास सरसों के तेल से मालिश करेंगे तो लीवर में प्लीहा से गैस्ट्रिक और पित्त के रस (बेली जूस) जैसे हानिकारक चीजों से छुटकारा मिलेगा। जिससे पाचन में सुधार होगा। मतली और आंत में दर्द से राहत पाने के लिए, आप नाभि पर पुदीना या अदरक का तेल भी लगा सकती हैं।

आपके मन को शांत करती है

हाथो से नाभि के चारों ओर पेट पर एक गोलाकार (गोल आकृति) बनाते हुए मालिश करने से तनाव कम करने और आराम करने में मदद मिलेगी। पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र को सक्रिय करने में, नाभि चिकित्सा आपकी भावनाओं को संतुलित करने में और एकाग्रता बढ़ाने में मदद करती है। तनाव कम करने के लिए आप लैवेंडर ऑयल का उपयोग भी कर सकती हैं। इससे मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य बेहतर होता है।

त्वचा में एक प्राकृतिक चमक लाती है

एक चिकनी, स्पष्ट और चमकदार त्‍वचा के लिए, हर दिन जैतून के तेल से नाभि (बेली बटन) की मालिश करें। प्राकृतिक फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट के साथ समृद्ध, जैतून का तेल सूजन को कम करने, त्वचा की समस्याओं को रोकने, त्वचा के संक्रमण को ठीक करने और सिर से पैर तक त्वचा को मॉइस्चराइज करने में मदद करता है। इसमें होंठ और एड़ी भी शामिल हैं।

बालों के विकास को बढ़ाती है

नाभि (बेली बटन), शरीर के अंदर 72,000 नसों से जुड़ी हुई है। ये शरीर को उन खनिजों को अवशोषित करने में मदद करती है, जो स्वस्थ बालों के विकास और वोल्‍यूम के लिए जिम्मेदार होते हैं। बालों को ग्रे करने के लिए जिम्मेदार नसों को पोषण प्रदान करता है। जिससे समय से पहले होने वाले ग्रेइंग को रोकने में मदद मिलती है। इससे बालों की जड़ें मजबूत होती हैं।

प्रजनन स्वास्थ्य में सुधार करती है

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ, श्रेयांश जैन कहते है कि “एसेंशियल ऑयल के साथ नाभि (बेली बटन) की मालिश करने से पुरुषों और महिलाओं दोनों के प्रजनन स्वास्थ्य में सुधार होता है

जोड़ों के दर्द से राहत दिलाती है

मांसपेशियों में सूजन होने से जोड़ों में दर्द हो सकता है। नाभि चिकित्सा के लिए अरंडी के तेल, दौनी के तेल का उपयोग करने से दर्द में कमी, जोड़ों में मजबूती और लचीलापन आता है। अगर आप गठिए के प्रारंभिक स्तर में हैं या आपकी हड्डियां कमजोर हैं, तो आपके लिए नाभि चिकित्सा एक अच्छा विकल्प है राहत पाने के लिए।

सूखी (ड्राई) आंखों के सिंड्रोम में सुधार करती है

प्रदूषण, बहुत ज्यादा पढ़ाई करने, स्क्रीन देखने, धूम्रपान करने, उम्र बढ़ने, या किसी अन्य चिकित्सा स्थिति के कारण आंखें ड्राई हो जाती हैं। जो आपकी दृष्टि में बाधा डाल सकती हैं और परिणामस्वरूप आंखों में जलन हो सकती है।